सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, May 26, 2023

वो चुप क्यों हैं?

मैं चुप रह नहीं पाता इसलिए चुप रहने वाले लोगों से दूर चला जाता हूं। 
किसी चुप सी जगह।
इतनी चुप जहां मेरी आवाज़ कुछ देर स्वयं को सुनाई दे। 
मेरे आसपास बड़े चुप से लोग रहते हैं। 
गांव भी अब चुप रहने लगा है।
पेड़, पत्ते, कागज सभी चुप हैं। 
पेड़ को काटने वाले।
पत्तों को जलाने वाले और कागज को जेब में छुपाने वाले भी चुप हैं। 
मेरा उनसे प्रश्न है कि वो इतने चुप क्यों रहते हैं? 
स्थान की चुप्पी समझ आती है इंसान की नहीं। 
स्थान हमेशा से चुप थे हैं और रहेंगे। स्थान की कहानी तो इंसानों ने सुनाई है।
स्थान का चुप होना उसके बूढ़े होने से संबध रखता है।
और इंसान का समझ पाना मुश्किल है। कुछ लोग जो चुप हैं वो खुद को सफल मानते हैं। कुछ लोग भी उन्हें सफल मानते हैं। क्या सफल होने के बाद लोग चुप हो जाते हैं? 
सही-गलत पर उनके विचार शून्य हो जाते हैं?
क्या वो डर जाते हैं? 
वो सफल क्यों हैं?
वो चुप क्यों हैं?
मैं वापस चुप सी जगह पर जाऊंगा और पूछूंगा वो चुप क्यों हैं।

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