क्या कुछ छूटा है बीते वर्षों में?
कितना कुछ साथ ला पाया हूं मैं बीते वर्षों से छीनकर इस साल में?
इस वर्ष में कितना कुछ मैं प्राप्त करूंगा? और कितना कुछ समेटकर अगले साल में कूदूंगा?
कितना जीवन को जी पाया हूं?
आगे कितना उससे लड़ पाऊंगा?
क्या साथ लेकर मैं वर्ष दर वर्ष भविष्य में कूद रहा हूं?
एक नियत और सुनिश्चित यात्रा में कितना कुछ अपना पाया हूं?
कितना कुछ समेट पाया हूं?
कितना कुछ अभी में मेरे पास है?
कितना कुछ बाकी है?
कुछ है...
कोई है...
जो बता रहा है कि साल बदल गया है।
तुमने आज की तारीख में पिछला साल लिख दिया है।
तुम अभी वहीं अटके हुए हो।
तुम्हें यहां भटकना है, जहां सारा कुछ नया है।
क्या नया है?
"जलता सूर्य
मौन चंद्रमा
मैले आकाश
नुचती पृथ्वी
धुंधलाते तारे
बंधते नदी
कटते पहाड़
सूखते झरने
बिखरते बादल
विषैली हवा
कटता जंगल
लड़ता धर्म
मरती जाति सभी शाश्वत हैं।"
देंह पुरानी है।
कपड़े पुराने हैं।
आदतें पुरानी हैं।
विचार पुराने हैं।
दुख पुराने हैं।
फिर नया क्या है?
दिन नया है।
तारीख़ नई है।
सुख की कल्पना नई है।
संघर्ष नया है।
उम्मीद नई है।
शरीर पर रेंगती कुछ रेखाएं नयी हैं।
आंखों की थकान नई है।
और फिर बीतते समय के साथ....
नफ़रत नई होगी।
अहंकार नया होगा।
प्रेम नया होगा।
प्रेम में जीया हुआ सारा कुछ नया होगा।
वो सारा कुछ नया होगा जब हम उसे प्रेम की परिधि में समेट लेंगे।
फिर हमारा यह स्वीकार करना नया होगा, कि नया कुछ भी नहीं था।
सारा कुछ शाश्वत था।
"उगते सूरज
शीतल चंद्रमा
फैले आकाश
घूमती पृथ्वी
टिमटिमाते तारे
मुक्त नदी
स्थिर पहाड़
बहते झरने
एकत्रित बादल
स्वच्छ वायु
घने जंगल
अखंडित धर्म और जीवित जाति की तरह।"
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