सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, April 10, 2024

"पूर्णता" अब अयोध्या पूरा नजर आता है

का भैया पकौड़ी कैसे दिए?

२० रूपया प्लेट।

प्लेट मतलब, कितना रहेगा भाई? 

अब राम जी के नावे जितना हाथ से उठ जाए। 

अच्छा ठीक बा पकौड़ी संगे एक चाय और देई दीहो। 

अच्छा.. अच्छा आप बैठो। 

चाय की चुस्की लेते हुए मैं,हम्म... ठीक है। 

बगल की बेंच पर बैठा व्यक्ति, का एक नंबर चाय? 

नहीं-नहीं बस पीने लायक है। थकान मिटाने लायक नहीं बस थोड़ा आराम देने लायक।

तबै तो कहे भोंसड़ी वाला गंगा ब्रांड दूध का चाय बनाता है। साला उसमें पहले से हीं गंगा जी का पानी ज्यादा और कैमिकल वाला दूध कम रहता है। 

 मतलब ठीक है... लेकिन एक नंबर वाली चाय हमारे बनारस में मिलती है। 

आप बनारस से हैं? 

नहीं उसके आसपास से। 

बताईए हम अब तक भोले के नगरी नहीं जा पाए।

कोई बात नहीं कभी जाए के कोशिश करिहो। उहवां गंगा जी भी हैं और एक नंबर वाली चाय भी।

आप कहां से हैं? बड़ा झंडा लिए हैं किसी यात्री दल के साथ आए हुए हैं क्या? 

नहीं,हम तो यहीं के हैं रामनगरी के। यहीं लोगों को रास्ता बताते हैं। ई चोरवा मेरा दोस्त है जो चाय पकौड़ी बेच रहा है। 
अरे! मूत पिलाव थोड़ा सा। 

अरे! तुम पैसा तो दोगे नहीं बस चाय पेलोगे।

तो क्या चाहते हो तुम्हारे झांट बराबर चाय का पैसा दें? सरयू का पानी थोड़ी डाल बना रहे हो। 

नहीं-नहीं अपना मूत मिला के पिला रहे हैं तुमको। 
पकौड़ी कैसा है भैया? 

एकदम मजेदार। लेकिन मेरा दोस्त बोल रहा है ढे़रे महंगा दे रहे हैं। 

माल पड़ा है भाई साहब। वो तो आज भीड़ कम है। 

कैसे कम है? आपके यहां लोग कम आ रहे हैं या मंदिर में कम आए हैं? 

शहर में कम आए हैं। आज सुबह घाट गया तो सरयू में पानी अधिक दिख रहा था भीड़ कम। 

आप सरयू देखने जाते हैं या नहाने? 

पहले नहाने जाता था अब जब से मंदिर बना है तब से सुबह की बेला में देखने चला जाता हूं। 

क्या दिखता है आपको भीड़ और पानी के अलावा? 

"पूर्णता" अब अयोध्या पूरा नजर आता है। संघर्ष, इंतजार , तपस्या सारा कुछ श्रृद्धा में बदल चुका है। ये भोंसड़ी का जो अभी मेरा मूत पीकर हंस रहा है कुछ दिन पहले रो रहा था। अब सब ठीक है। सारा कुछ सही अनुपात में है। 
और दूं पकौड़ी? 

नहीं, सारा कुछ सही अनुपात में था। शायद मुझे कहीं और की पकौड़ी पसंद भी ना आए। 

#अयोध्या

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