नेशनल टेलिविजन की प्राइम टाइम पर उसने जगह बना ली है।
*कुंभ में हुई अव्यवस्था और दुर्घटना को कुंभ के भारी जाम में कहीं गुम कर दिया गया है। गंगा के जल जैसी शुद्धता अपने मन में स्थापित कर पूरा तंत्र यह दिखाने में लगा है कि कैसे एक जोक से भारत की संस्कृति को चोट पहुंच रहा है।*
*`नैतिक तौर पर हम कितने गर्त में जा रहे हैं।`*
*`सभ्यता का कैसे ह्रास हो रहा है।`*
*`जिसके लिए फांसी तक की मांग की जा रही है।`*
*`सदियों से रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य को पढ़ता,समझता और रटता भारत नैतिकता के मामले में इतना कमजोर हो चुका है?*`
*जहां देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के संबंध में मशहूर उपन्यासकार श्री काशीनाथ सिंह जी कहते हैं हर हर महादेव' के साथ 'भोंसड़ी के' नारा सार्वजनिक अभिवादन है!*
*रंग पर्व होली के अवसर पर व्रज व भोजपुरी अंचल में होने वाली हास्य विनोद को देश कैसे देखता है?*
*
क्या वास्तव में इस विषय पर इतनी अधिकता से चर्चा की आवश्यकता है?
या कोरोना काल की घटना के तर्ज़ पर .सरकार की विफलताओं को किसी चुटकुले के चादर से ढका जा रहा है?
आक्सीजन की कमी से हुई मृत्यु को झूठलाती तंत्र को क्या सजा मिलनी चाहिए थी?
हमारे देश के संसद तथा प्रदेश के विधान भवन में अपराधियों का जमावड़ा लगता है। जिसमें संगीन अपराध से जुड़े नेता पदस्थ हैं जिनमें से कुछ पर हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे मामले शामिल हैं।
जहां एक मुस्लिम नेता हिंदुओं को कंजड़ और देशद्रोही कह सकता है। हिन्दू राजनेता मुस्लिम को बिना की सबूत के आतंकवादी कह सकता है। और फिर उन्हीं के साथ देश की संसद में आम जनता के दैनिक और मौलिक मुद्दों पर बहस करता है। एक राय बनाता है।
संसद भवन में मानिंद को कटुआ कहा जा सकता है। लेकिन इन विषयों पर हमारे देश में शाम के ५ से १० बजे तक टेलिविजन पर बहस होती है जिसमें राष्ट्रीय प्रवक्ताओं का विषय ज्ञान हमारे मस्तिष्क को और मैला हीं करता है। लेकिन इस संबंध में कोई सजा नहीं। कोट पैंट में छुपे हुए एंकर मुखरता से अपनी अस्मिता को पिछे ढकेल किसी विशेष दल का समर्थन करते हैं और वह भी हमारे मध्य नैतिक हीं है।
*कौन तय करता है यह?*
नेता जब अपने वादे पूरे नहीं करते तो उनकी क्या सजा तय की गई है?
५ वर्ष का लंबा इंतजार?
संस्कार के दर्शन में..१४ फरवरी को पार्क में बैठे प्रेमी जोड़ों पर लाठी चलाते भारत के युवा घर पर अपनी मां के खिलाफ पिता द्वारा किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ मौन रहते हैं।
*`आगे से डाली कि पिछे से डाली बताव ऐ भौजी ..`* गाने वाले कलाकार संसद में बैठकर हमें भाषाई ज्ञान देते हैं।
*`तोहार लहंगा उठा देब रिमोट से`* कहने वाले सदाचार और संस्कार के ठेकेदार बने बैठे हैं।
*`मुस्लिम नेता को जिन्ना कहने वाले लोग कैसे उनके साथ संसद में बैठते हैं`*
*`दिल्ली चुनाव को पाकिस्तान चुनाव कहने वाले देशभक्त कैसे हमसे नजरें मिला पाते हैं`*
*`सरकारी भर्ती के वादों के समय क्या`* *मैं समय हूं* *`जैसा कोई सदस्य हमारे बीच अपने जोक के लिए मौजूद था`*
क्या देश में फैली महंगाई और बेरोज़गारी जैसे स्थाई मुद्दे इतने बौने हो गए हैं इस देश के लिए कि संसद में *जोक* पर चर्चा हो रही है?
किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए यह जोक इतना प्रमुख हो गया कि उन्होंने इसके संबंध में जांच और पूछताछ का वादा भी कर दिया।
यह कितना हास्यास्पद है? मैं उस जोक पर जितना चिंतित था उतना हीं इन चीजों पर मुझे हंसी आ रही है।
क्या यह विश्वगुरु बनने की अंतिम सोपान है? क्या इसके बाद सिर्फ हमें देखने की आवश्यकता होगी?
या हो सकता है अब नए सिरे से राष्ट्र निर्माण की कोई विधि बनाई जा रही हो जिसमें सरकार को सारा कुछ अपने अनुरूप तय करने की मुक्तता हो जिसमें हमारे संविधान का प्रमुख एवं चौथा स्तंभ मजबूती से तटस्थ भाव से सहयोग कर रहा हो।
और जनता इंतजार...
यह सारा कुछ उस *घटिया जोक* के समर्थन में नहीं है। यह नैतिकता के जागरण के संबंध में है। दमन नितियों के विरोध में है।
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