मुझे इस यात्रा को सफल बनाने के लिए लगभग २ वर्ष कुछ ठीक-ठाक महिनों का समय लगा।
मेरी निजी इक्छाओं और कुछ छुटपुट जिम्मेदारियों से ठसाठस भरे जीवन ने मेरी यात्रा की इच्छा को पंगु बना दिया था।
मानों देह पर जमी धूल मैं कभी साफ नहीं कर पाऊंगा।
जिस वाहन से मुझे यात्रा करनी है वह अपने सारी भौतिकता को समाप्त कर गया हो।
फिर बिते दिनों २ वर्षों से भी अधिक समय से फूआ द्वारा मिलते, व्यस्तता के उलाहने, अति धन संचय के ताने और स्वस्थ नोंक-झोंक ने ईंधन का काम किया।
मैं एक वहां पहुंच गया जहां की दूरी बहुत अधिक नहीं थी। जहां इतनी लंबी अवधि को पोषित करना मात्र एक क्रूरतम वर्तमान हो सकता है और कुछ भी नहीं।
बहुत कुछ अच्छा खिला देने के प्रयास
कहीं बेहतर जगह घूमा देने की भूख
बहुत कुछ भेंट कर देने की लालसा के बीच
इस यात्रा के अंत में मैं अपना मौन लिए वापस कमरे की दीवार को ताक रहा हूं।
मौन इतना ताजा है कि अभी भी बीते दिनों के दुहराते उच्चारण होंठ से बाहर कूद जा रहे हैं।
जल्दी वापस आने के वादे के साथ सारा कुछ अपने साथ समेट लाया हूं।
यह जानते हुए की यह सीमा इतनी छोटी और सुखी है कि मुझे और अधिक गाढ़ी स्मृतियों का समान इकठ्ठा करना था लेकिन।
स्वार्थ की नगरी में जरूरत का मशीन ठीक करने के लिए मैं अधूरा भाग आया हूं।
जैसे-जैसे काम की पपड़ी देह पर जमती जाएगी स्मृतियां अदृश्य होकर चहलकदमी करेंगी
1 comment:
Tu lucknow aata hai aur btata tk nii.
Bs likh k nikal jata hai.
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