अपनी
क्षोभ
क्षुधा
प्रसन्नता
आश्चर्य
विरलता
और विशेष रूप से विपन्नता
को भरसक वापस पाने के क्रम में एक मीठा अपराध।
रूदन के स्वर में आलोक फैलाता श्रृंगार।
सारे आश्चर्य भीतर की सहजता को नहीं स्विकार करते। कुछ उससे लड़ते हैं।
हम उसमें भी अपने लिए कुछ सजे हुए पत्ते चुनते हैं जिसमें हमारा निर्मोही होना तो नहीं लेकिन सूखा होना झलकता है।
और उस सूखे को कुछ बूंदों की आवश्यकता है
इसलिए यह हमें जरूरी लगने लगता है
और यह जरूरी है भी
कुछ अपनों में प्रकाश देखना
No comments:
Post a Comment