सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, February 22, 2021

श्रद्धा

आंखों के नीचे अलसाई सी झुर्रियां। पेशानी पर उम्र की मुक्तता। आंखों में धुंधलाती हुई उम्र का संघर्ष। सफेद हो चले बालों में छुपी लंबें उम्र की यात्रा। और होंठों पर सूखी हुई ढ़ेर सारी किस्से कहानियां आपके अस्तित्व को और भी मजबूत करती हैं। आपके स्वभाव को और भी खूबसूरत बनाती हैं। मैं राजनीति से सदैव से घृणा करता आया हूं शायद तब से जब से मैंने होश संभाला। तब से जब से राजनीति और सेवा में अंतर समझा। मैंने कभी आपको राजनेता के रूप में नहीं देखा। मैं अक्सर अपने आप को इस बात के लिए भाग्यशाली मानता हूं। मेरा आपको राजनैतिक दृष्टि से देखना मुझे आपके प्रति घृणा से भर देता। जैसे मैं भगवान में लेशमात्र भी विश्वास नहीं करता। पहले करता था लेकिन अब नहीं करता वैसे हीं आप में मेरा तनिक भी विश्वास नहीं। बंगाल आने के बाद भगवान के प्रति मेरे मन में सिर्फ श्रद्धा है। वो श्रद्धा मेरे भितर आपके लिए बहुत पहले पनप चुका था। वो श्रद्धा कई पन्नों पर अपनी जगह बना चुका है। मेरे पास आपसे जुड़ा कोई संदेह नहीं, किसी प्रकार का विचार नहीं कोई सवाल नहीं। इन तमाम उहापोह से इतर बस श्रद्धा है। संदेह विचार पैदा करते हैं और विचार से विश्वास की उत्पत्ति होती है।

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