सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, March 25, 2020

"कोरोना"


सांस लेने और सांस छोड़ने के मध्य हमारा जीवन होता है। हर दिन लगभग कुछ मिनटों में हम खुद को जीवित पाते हैं। बाकी का समय हमने जीवित रहने के लिए सांस लेने में व्यतित कर दिया। पर अब मानों जीवन सांसों की जगह हाथों में जा छुपा हो। सफाई के रूप में। जो सांसों तक का सफर तय कर रहा है। हाथ धोते रहिए जीवन जीते रहिए।
विकास हीं विनाश का कारण होता है। ऐसा शब्दों में सुनता आया था। कभी देखने का अवसर प्राप्त भी हुआ तो इस स्तर पर नहीं जहां अपने, अपनों से दूर हो जाएं। जहां दूसरों के लिए जीने की बात करने वाले भी खुद की चिंता में गुम हो जाएं। इतना गुम की कोई अवसर भी मिलाने में नाकामयाब हो। कभी दूर ना होने की बात करने वाले भी पास होकर दूर हो जाएं। मरने मारने की बात करने वालों की शक्ति समाप्त हो जाए। कभी नहीं हुआ। मैंने हमेशा से लोगों को सब कुछ हासिल करते देखा,सामने वाले की परवाह किए बिना। पर अभी वो सारी इक्छाएं सांसों की माला फेरने में व्यस्त है। सांसों की माला फेरने के मध्य हर कोई भगवान को भूल रहा है। मंदिरों पर ताले हैं। लोग भगवान की परिभाषाएं गढ़ रहे हैं। सांस लेने और छोड़ने के मध्य जो जीवन था वहां अब डर का घर है। और डर ऐसा जो एक बहुत ही छोटी बिंदु के समान है।
 मैं नहीं मानता। वह बिंदु नहीं प्रकृति का अभिसाप है। जब समाज का कोई वर्ग कष्ट में होता है तो असंतोष बढ़ता है। क्रांति आती है और समानता की लहर दौड़ उठती है। यह प्रकृति का असंतोष है जिसने क्रांति का रूप ले लिया और अपने हक की लड़ाई लड़ बैठी। आवाज नहीं है उसकी बस कर्म हैं। हमने आराम और सर्वाथ के आगे सांसों की किमत खो दी थी कहीं। आज वो हमें प्रकृति बता रही है। अपने क्रोध से। यह मौका है जीवन के असली महत्त्व को समझने का। यह मौका है प्रकृति को समझने का। यह मौका है विकास का विनाश होने से बचाने का।

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...