सूरज का डूबना भी स्वयं में एक आगाज होता है। चांद के निकलने का। पहाड़ों के पिछे अस्त होता सूरज अपनी दिन भर की थकान को दर्शाता है। उस थकान में भी एक उर्जा निहित होती है जो हम अगले दिन पुनः उसमें भरपूर पाते हैं। सूरज कभी नहीं थकता। अक्सर सोचता हूं अगर बादल नहीं होते तो सूरज की गरमाहट को कम कौन करता? अगर चंद्रमा नहीं होता जो उसकी गर्मी को अपनी शितलता से नगण्य कौन बनाता? वृक्ष नहीं होते तो हवाओं का क्या मूल होता? कितना अलग संघर्ष होता हमारा सूरज के प्रति। केवल सूरज ही नहीं लगभग हर एक के प्रति हमारा अलग संघर्ष होता है। और हम उसी संघर्ष में जीते हैं हर रोज। हर दिन अस्त होता है। हर रोज उदय। -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Saturday, April 4, 2020
सूरज का डूबना भी स्वयं में एक आगाज होता है
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