सूरज का डूबना भी स्वयं में एक आगाज होता है। चांद के निकलने का। पहाड़ों के पिछे अस्त होता सूरज अपनी दिन भर की थकान को दर्शाता है। उस थकान में भी एक उर्जा निहित होती है जो हम अगले दिन पुनः उसमें भरपूर पाते हैं। सूरज कभी नहीं थकता। अक्सर सोचता हूं अगर बादल नहीं होते तो सूरज की गरमाहट को कम कौन करता? अगर चंद्रमा नहीं होता जो उसकी गर्मी को अपनी शितलता से नगण्य कौन बनाता? वृक्ष नहीं होते तो हवाओं का क्या मूल होता? कितना अलग संघर्ष होता हमारा सूरज के प्रति। केवल सूरज ही नहीं लगभग हर एक के प्रति हमारा अलग संघर्ष होता है। और हम उसी संघर्ष में जीते हैं हर रोज। हर दिन अस्त होता है। हर रोज उदय। -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com

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