सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, May 8, 2020

रात्रि

जुगनू की रोशनी।झींगुर की आवाज।मेंढ़क की टर्र-टर्र।और उसमें खुद को सुनाई देती अपनी सांसे। शांति भरा एक लंबा मौन और गहरी चुप्पी। आकास रूपी अनंत में सुबह का इंतजार करतीं आंखें।यहीं तो सहारा है। घनघोर अंधेरे वाली काल रात्रि का।                                                       -पीयूष चतुर्वेदी

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