सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Saturday, June 6, 2020

थकान

वर्तमान अपनी दिन भर की थकान लिए हर शाम एक पेड़ के नीचे अपने सबसे अच्छे दोस्त भविष्य से मिलने जाता है। जहां वो अपना दिन भर का सारा बिता भविष्य को सुना खुद का मन हल्का करता है। भविष्य मुस्कुराता हुआ बोलता है। बस इतना हीं, मेरे चक्कर में ना पड़ भाई। मेरा कोई भरोसा नहीं। मेरी सुनेगा तो मुझसे मिलने कभी नहीं आएगा। वतर्मान उसके कंधे पर हाथ फेरता अपने पिछे की लगी धुल को झांडते हूए उठता है और अपने बीते को याद कर रात की नींद में खो जाता है। और हां, यह रोज होता है।

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