वर्तमान अपनी दिन भर की थकान लिए हर शाम एक पेड़ के नीचे अपने सबसे अच्छे दोस्त भविष्य से मिलने जाता है। जहां वो अपना दिन भर का सारा बिता भविष्य को सुना खुद का मन हल्का करता है। भविष्य मुस्कुराता हुआ बोलता है। बस इतना हीं, मेरे चक्कर में ना पड़ भाई। मेरा कोई भरोसा नहीं। मेरी सुनेगा तो मुझसे मिलने कभी नहीं आएगा। वतर्मान उसके कंधे पर हाथ फेरता अपने पिछे की लगी धुल को झांडते हूए उठता है और अपने बीते को याद कर रात की नींद में खो जाता है। और हां, यह रोज होता है।
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Saturday, June 6, 2020
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।
का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा। हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल? का पता हो,...
No comments:
Post a Comment