मेरा भारत महान।।।  तब से अब तक...... अब से कब तक... ? पता नहीं।  कभी था। पर अब नहीं। ढूंढ़ता हूं। आज भी पर मिलता नहीं। मानों जैसे देश की महानता किसी कुर्ते के जेब में जा अटकी हो। एक समय पर जिसे उसकी जरूरत होती है वह उसे खर्च कर देता है।  बहुत हीं कम अनुपात में। ५ वर्ष में एक बार। फिर बाकी के दिनों में एक लंबा इंतजार होता है। परेशानी अपनी कंधे पर लिए दौड़ती जिंदगीयां चुनाव के समय वापस महानता के दर्शन करती है।  वादे होते हैं। तु-तु मैं-मैं होती है। आरोपोंं का खो-खो खेला जाता है।  फिर एक दौड़ होती है महान बनने की। जिसे महान मान लिया जाता है उसके हाथ लगती है गद्दी। और दूसरा अपनी महानता, देश की महानता, असल जिंदगी की परेशानियों से सजे धुन में गाना गाता रहता है तब तक, जब तक गद्दी ना मिल जाए। और जनता देखती रहती है लोगों को महान बनते। देश को महान बनते। अपने रेखाओं में लगती स्याही से दूसरों की महानता की कहानी लिखता है।  मेरा भारत महान???  सबका योगदान। पर क्या सब एक समान?????? -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.comमेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
 - Kanpur, Uttar Pradesh , India
 - मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
 
Tuesday, June 9, 2020
अब से कब तक?
मेरा भारत महान।।।  तब से अब तक...... अब से कब तक... ? पता नहीं।  कभी था। पर अब नहीं। ढूंढ़ता हूं। आज भी पर मिलता नहीं। मानों जैसे देश की महानता किसी कुर्ते के जेब में जा अटकी हो। एक समय पर जिसे उसकी जरूरत होती है वह उसे खर्च कर देता है।  बहुत हीं कम अनुपात में। ५ वर्ष में एक बार। फिर बाकी के दिनों में एक लंबा इंतजार होता है। परेशानी अपनी कंधे पर लिए दौड़ती जिंदगीयां चुनाव के समय वापस महानता के दर्शन करती है।  वादे होते हैं। तु-तु मैं-मैं होती है। आरोपोंं का खो-खो खेला जाता है।  फिर एक दौड़ होती है महान बनने की। जिसे महान मान लिया जाता है उसके हाथ लगती है गद्दी। और दूसरा अपनी महानता, देश की महानता, असल जिंदगी की परेशानियों से सजे धुन में गाना गाता रहता है तब तक, जब तक गद्दी ना मिल जाए। और जनता देखती रहती है लोगों को महान बनते। देश को महान बनते। अपने रेखाओं में लगती स्याही से दूसरों की महानता की कहानी लिखता है।  मेरा भारत महान???  सबका योगदान। पर क्या सब एक समान?????? -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com
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मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा। 
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