सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, June 22, 2020

धरती सा

मैं मानों धरती सा। तुम मेरी सूरज बन जाना। 
मैं बंजर जमीन सा मानों। तुम उस पर नदी सी बह जाना। 
मैं शांत पत्तों सा जड़ हुआ। तुम हल्की हवा का झोंका दे जाना। 
मैं पंछी सा दर-दर भटकता हुआ। तुम मुझे अपने, आंचल का सहारा दे जाना। 
मैं मौन हो जाऊंगा उस पल में कहीं। तुम अपने स्पर्श से मुझे चंचल कर जाना।

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