सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Saturday, June 27, 2020

गरीब मां का आंचल

स्वर्ग से एक बच्चा धरती की ओर चला। गरीब मां के आंचल में आ गिरा। 
उस गरीब मां का आंचल इतना कमजोर हो चुका था, चूल्हे पर भोजन पकाने की तेज आंच से माथे पर जमें पसीने की बूंदों को पोछता हुआ। 
कि नहीं सह सका उसके जीवन का भार। 
बच्चा जा गिरा दूसरी मां के गोद में। 
धरती मां के गोद में। 
वह गरीब मां अब भी अपने बच्चे को,खुद के द्वारा भर मुठ्ठी लिए उन मिट्टी के कणों में पागलों सी ढूंढ रही है।
पर चलता फिरता मिट्टी, मिट्टी में मिलकर मिट्टी हो चुका है।
चूल्हे की गर्म आंच को सहने वाली, धूएं के कारण धूंधली हो पड़ी रोशनी से लड़ने वाली मां गरीबी की आंच नहीं सह पाई। 
अपने आंखों की बची चंद रोशनी लिए अपने बच्चे के बचपन को ना देख पाई। 
एक मां ने स्वर्ग से मिला एक सुंदर उपहार खो दिया। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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