सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, June 10, 2020

इच्छा

#खुशी खुशी आज अपनी पुरानी तस्वीरें देखने की इच्छा जता रहा था। यह कहते हुए कि जब वह बड़ा होकर नया मोबाइल लेगा तो सारी तस्वीर उसे वापस चाहिए। वो दिखाएगा अपने दोस्तों को, कैमरे में क़ैद अपना बचपन। उस बचपन की खुशी जो वो खुद दिनों बाद शायद खो देगा। असल में हम सभी को खुशियों को इकट्ठा करने का प्रयास करना चाहिए। मोबाइल में तस्वीर के रूप में नहीं या किसी गुल्लक में नहीं, बस यादों की एक पोटली बनाकर उसे अपने हथेली में छुपा देना चाहिए।‌ उसे कोई देख ना सके हमारे सिवाय। बस उसपर हमारा अधिकार हो। अपनी खुशियों के स्वामी हम स्वयं बनें रहें। मैं यह बात इसे बताना चाहता था। लेकिन मेरी खुद की पोटली कहीं गुम हो गई है। तलाश जारी है। -पीयूष चतुर्वेदी

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