रंगनिति
ढंगनिति
भंगनिति
राजनिति
भागनिति
लाजनिति
चाहे जो कह लो .....सारी अनिति भी स्वयं में निति है।
और यह सब हमसे है और हम सब इससे हैं।
पर कुछ तो है इससे अलग है।
और वह सबके पास नहीं।
बहुत कम के पास है।
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा। हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल? का पता हो,...
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