सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Tuesday, January 12, 2021

बेलूर मठ


बेलूर बंगाल में एक स्थान। मठ, जहां गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान करते हैं। बंगाल आने से पूर्व मैंने सिर्फ किताबों में इसके बारे में पढ़ा था। बंगाल आया तो सबसे पहले इसी स्थान को अपनाया। पिछले वर्ष तक निबूंतल्ला में मैं हर शुक्रवार को अपनी ट्रेनिंग के लिए जाया करता था। कुछ घंटों की ट्रेनिंग समाप्त होने के बाद का समय मठ में हुगली नदी किनारे बैठकर व्यतीत करता था। सामने दक्षिणेश्वर मंदिर को निहारता फिर शाम को अपने भीतर एक गहरी शांति लिए वापस कमरे पर आ जाता। वो शांति शहर की भीड़ में थक ज़रूर जाती थी लेकिन समाप्त नहीं होती थी। अब भी जब कभी समय मिलता है मैं यहां जरूर जाता हूं। क्यूं इसका ज़बाब अब भी मेरे लिए ढूंढ पाना मुश्किल रहा है। क्योंकि ना मैं घनघोर आस्तिक हूं ना हीं नास्तिकता में विश्वास रखता हूं। मैं इन दोनों के मध्य तार्किकता के साथ स्वयं को पाता हूं। जैसे काली मंदिर में मां काली से ज्यादा परमहंस से जुड़ाव। बहुत से लोग मुझे नास्तिक मानते हैं लेकिन मैं अब भी मंदिर जाने से स्वयं को नहीं रोक पाता। लेकिन मेरा मंदिर जाना बहुत से सवालों के साथ जाना होता है। परंतु बेलुर मठ में मैं खुद को खाली करके जाता हूं। बंगाल आने के बाद मैं कितनी बार यहां जा चुका हूं वह मुझे याद नहीं। किसी कारण में आज नहीं जा पाऊंगा इस बात का अफसोस अवश्य है।
-पीयूष चतुर्वेदी

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