सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, January 17, 2021

अजनबी

मेरे कमरे में एक बंगाली दादा रहते हैं। मेरे हीं हम उम्र हैं। हम दोनों पिछले दो वर्षों से साथ में हैं। साथ में भोजन करते हैं। घूमने जाते हैं। फिल्में देखते हैं। यहां तक कि बंगाल के बारे में मेरे धुंधले ज्ञान को भी दादा ने अपने ज्ञान से साफ किया। लेकिन कल तक मैं उनके नाम से भी अंजान था। सच कहूं तो कभी जरूरत भी नहीं महसूस हुई। मैं उन्हें दादा कह कर बुलाता था और वो मुझे बाबा.. शायद उड़ी बाबा के तर्ज पर। लेकिन पिछले दिनों उनके विवाह का पत्र प्राप्त हुआ। मैंने उन्हें उनका नाम ज्ञात ना होने की बात बताई। वो हैरान नहीं थे। उन्हें भी मेरा नाम नहीं पता था। मैंने उनका फोन नंबर दादा रूम के नाम से जोड़ रखा था। पत्र प्राप्ति वाले दिन हम दोनों ने एक दूसरे का नाम जाना। 
मुझे लगता है हम सबके जीवन में ऐसे रिश्तों की आवश्यकता है। जहां जानकारी से अधिक प्रेम और विश्वास अपनी जड़ें जमाए बैठा हो। हम सभी को ऐसे हीं कुछ अजनबी रिश्तों को जन्म देना चाहिए। 
हांलांकि उनका नाम दीपांकर चटोपाध्याय है। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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