मुझे लगता है हम सबके जीवन में ऐसे रिश्तों की आवश्यकता है। जहां जानकारी से अधिक प्रेम और विश्वास अपनी जड़ें जमाए बैठा हो। हम सभी को ऐसे हीं कुछ अजनबी रिश्तों को जन्म देना चाहिए।
हांलांकि उनका नाम दीपांकर चटोपाध्याय है।
-पीयूष चतुर्वेदी
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा। हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल? का पता हो,...
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