सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Tuesday, January 19, 2021

भक्ति और पागलपन

पिछले दिनों जब महामारी की आंच से पूरा विश्व ठहर गया था। उस समय भारत में नेशनल चैनल पर रामायण चल रहा था। बचपन की यादों में वापस से डुबकी लगाई थी मैंने। बहुत वर्षों बाद मैंने टी.वी. को प्रणाम किया था। अरूण गोविल हीं असली वाले राम हैं यह विश्वास कुछ वर्ष पहले टूट गया था जो वापस जुड़ता जा रहा था। राम बनवास के बाद मैंने दो ऋषियों की बात बहुत ध्यान से सुनी जो आज के समय में सटीक बैठता है। "भक्ति और पागलपन में ज्यादा अंतर नहीं होता" 
भक्ति जब मानवता की जगह कट्टरता का चोला पहनकर बैठ जाती है तब वह पागलपन का रूप ले बैठता है। 
जैसे चैनल पर समाचार पसंद नहीं तो चैनल देखना बंद कर दें। आपके निजता का हनन हो रहा हो तो उससे दूरी बना लें। यह शायद पागलपन हीं है। कल को सड़क खराब हो हम कहें सड़क खराब है। उसकी शिकायत करें और कोई कहे सड़क बदल लो यह पागलपन नहीं तो क्या है? 
कोई हमें गाली दे और शिकायत करने पर कोई कह बैठे अपने कान बंद कर लो। इसे क्या कहना पसंद करेंगे?  फिर हर बात के लिए कानून क्यों है? क्यों हर छोटी-बड़ी चिज के लिए मानक तय है?
इतने गांधीवादी तो हम तब भी नहीं थे जब गांधी हमारे मध्य उपस्थित थे। फिर उनके विचारों को लेकर को आज भी लोगों को उन्हें बुरा भला कहते सुना है। इतना बुरा कि उन कहने वालों को दिल से कभी माफ नहीं किया जा सकता।
जैसे सरकार के खिलाफ बोलना देश के खिलाफ बोलना हो जाना यह भक्ति है। और सरकार के खिलाफ बोलने वाला हिन्दू, कम्यूनिस्ट‌। मुसलमान, आतंकवादी और सिख, खालिस्तानी। फिर वहीं सरकार के खिलाफ बोलने वाला सरकार का हिस्सा बन बैठे तो देश भक्त। यह पूर्ण रूप से पागलपन है। और जहां यह दोनों समाप्त हो जाता है वहां आता है मिडिया। 
सच में भक्ति और पागलपन में कोई विशेष अंतर नहीं होता। 
-पीयूष चतुर्वेदी

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...