मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Saturday, January 23, 2021
मुक्तता
अल्हड़ सा बचपन कितना चिन्ता मुक्त और अपना सा हुआ करता है। जीवन की मुक्तता वास्तव में बचपन हीं सजा कर रखता है। और वह तब तक हमारे साथ चिपका रहता है जब तक हम गुलाम नहीं होते जवानी के। जब तक हमें थकान नहीं होती बुढ़ापे की। असल में जवानी हमारे जीवन का सीढ़ी है जहां पहुंचकर हम वापस तय कर सकते हैं बचपन और पचपन में किसकी आवश्यकता अधिक है। या एक सजी हुई सी खिड़की है जिसके एक और हमारा जिया हुआ जीवन है और दूसरी ओर जिया जाने वाला अधूरापन। जहां बचपना हमें जवान होने से रोकेगा और पचपन एक भारी टीस को सजाएगा। टीस बचपन को पचपन तक जिंदा ना रख पाने की। कसक बेवजह ना हंस पाने की। किसी त्यौहार पर नए कपड़े को पहनकर पूरा मुहल्ला हंसी बिखेरते ना घुम पाने की। ढ़ेर सारी मिठाईयों में से अपने पसंद की दो ज्यादा ना जुटा पाने की। हर किसी कि मीठी, कड़वी,सच्ची, झूठी बातों को एक तराजू में ना तौल पाने की। मुक्तता को झूठे बड़कपन से हराने की। और वो सारा जिया हुआ आश्चर्य अपने ज्ञान के आगे धुंधला कर जाने की।
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