सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, November 25, 2021

सत्य

मेरे लिए प्रभात एक संदेश लेकर आता है।
देश,शहर,गली से जुड़ी तमाम जानकारी।
यह सब किसी कागज पर लिखा नहीं होता ना हीं किसी पोस्टर पर सरकारी वादों सा चमकता है। ना बिकी हुई खबरों के जैसा अखबारों पर चमकता है।
सारा कुछ एक व्यक्ति के मुख से बिना किसी रूकावट आस-पास फैलता रहता है। वो आवाज़ स्वयं अपना राह तय करता है। सुनने वाले सुनते हैं बाकी अपनी राह चल पड़ते हैं। 
अंगिठी के सामने बैठा बड़बड़ाता हुआ वृद्ध अपनी धुन में सच्चाई को वाचता है। शब्दों की लकीर दूर से दूर तक पहुंचती है। मानों उसने शून्य को प्राप्त कर लिया हो। 
जैसे जीवन को इतने करीब से देखा हो जहां मृत्यु के लिए स्थान न बचा हो। जैसे यथार्थ के सभी झूठ को विष की भांति स्विकार कर लिया हो और सत्य धारा प्रवाह आकाश में हवाओं सी घुल रही हो।
-पीयूष चतुर्वेदी

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...