सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, May 15, 2022

नदी हो जाऊं


मुझे मात्र उतना मजबूत बनना है कि कोई मुझसे पूछे कैसे हो? और मैं ढ़़ह जाऊं।
फिर सामने खड़ा व्यक्ति मेरे आशुओं को इकट्ठा कर किसी नदी में मिला आए।
मेरा सारा दुख समुद्र में मिल जाए और मैं खाली हो जाऊं। 
फिर द्वारिका मेरे स्याही वाले कमरे की खिड़की से झांकता हुआ मुझसे बोले और भैया का हाल चाल बा? 
और मैं उससे बोलूं अब ठीक हूं। तुम थोड़े बड़े नजर आ रहे हो।
फिर मैं उसमें लिपटे गांव की खुशबू को अपनी नज़र में उतार नदी हो जाऊं।
-पीयूष चतुर्वेदी

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