फिर सामने खड़ा व्यक्ति मेरे आशुओं को इकट्ठा कर किसी नदी में मिला आए।
मेरा सारा दुख समुद्र में मिल जाए और मैं खाली हो जाऊं।
फिर द्वारिका मेरे स्याही वाले कमरे की खिड़की से झांकता हुआ मुझसे बोले और भैया का हाल चाल बा?
और मैं उससे बोलूं अब ठीक हूं। तुम थोड़े बड़े नजर आ रहे हो।
फिर मैं उसमें लिपटे गांव की खुशबू को अपनी नज़र में उतार नदी हो जाऊं।
-पीयूष चतुर्वेदी
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