सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, June 5, 2022

रिक्शा वाले के सवाल में बंगाल, बंगाल नहीं मछली था

शक्ति पुंज पकड़िए गा का?

हम्म।

कहां जाएंगे धनबाद?

नहीं हावड़ा।

हावड़ा ब्रिज?

हां, लेकिन शहर भी है। और ब्रिज के अलावा भी बहुत कुछ है। स्टेशन के पास में ब्रिज है। स्टेशन का नाम नहीं है।

अच्छा बंगाल में मछली बड़ा खाता है सब?

हां वहां आम बात है। और वहां लोग आम भी खाते हैं। हमारे यहां सब्जी जैसा हाल वहां मछलियों का है। लेकिन सब्जी ज्यादा खाते हैं और मछली रोज खाते हैं।

सब्जी रोज नहीं खाते?
तब त सब्जी की तरह बेचाता होगा मछली?

नहीं, सब्जी, सब्जी की तरह बेचा जाता है। मछली, मछली की तरह।

बाभन लोग रहता है बंगाल में?

क्या बात कर रहे हैं बहुसंख्यक है। नौ धागा वाला जनेव पहनता है।

यहां तो छः धागा वाला पहिनता है?
ऐसा काहे है? ढे़रे ज्ञानी होता है क्या सब?

हम्म।
नहीं ऐसा कुछ नहीं है। स्थान के साथ जीवन शैली भी बदलती है। यह मात्र उसी बदलाव का दर्शन है। जनेव पहनने से क्रोध और ज्ञान का कोई मेल नहीं। ना हीं मछली से है।

मनें बाभन सब भी खाता है?

हां सब लोग खाता है। बाभन से मछली का भी कोई संबंध नहीं। हम वहीं खाते हैं जो हमारे आसपास होता है। बंगाल के आसपास समुद्र हैं। उसमें मछलियां हैं। और यह सामान्य है।

आप बाभन है?

हां, लेकिन मैं नहीं खाता।

हम्म... देखिए त मनें बाभन सब भी खाने लगा? माना कोई मतलब नहीं है लेकिन किताब में अलगे लिखल है सब।

इतने में स्टेशन आ गाया।
रिक्शा वाले के सवाल में बंगाल, बंगाल नहीं मछली था।
ब्राह्मण दोषी था क्योंकि किताब ने ब्राह्मण को अलग नजरिए से दिखाया था। सात्विक पाया था। और वो किताब? किताब एक निर्देश था।
ऐसे निर्देश लिखने वाले धीरे-धीरे निर्णायक बन जाते हैं फिर वहीं समाज में कानून का रूप धर लेती है। अघोषित कानून। जिसका फैसला राह चलता कोई भी व्यक्ति कर सकता है। क्योंकि उसने कहीं कुछ पढ़ा है। जो उसका सत्य है। ब्राह्मण मछली नहीं खाते यह रिक्शा वाले का सत्य था।
-पीयूष चतुर्वेदी
#bengal
#incredibleindia
#machli
#howrahstation

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...