सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Saturday, September 10, 2022

आंखों में उतर आई है

जैसे कुछ बदल गया है..
चकमक सी दुनिया आंखों में उतर आई है..
दूर से पास , पास से दूर में ढेर सारी मुस्कुराहट चेहरे पर पसर गया है..

जैसे कुछ भी नहीं बदला..
वास्तविक सी दुनिया आंखों में उतर आई है..
दूर से पास , पास से दूर में ढेर सारी मुस्कुराहट चेहरे पर पसर गया है..

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