मैं केंद्र बिंदु नहीं।
मैं परिधि के आसपास भी नहीं भटक रहा।
मैं परिधि से बहुत दूर खड़ा हूं।
सारी ज़बाबदेही मेरी नहीं है।
मुझसे पूछकर लोगों ने रिश्ते नहीं चुने थे।
उनके निभाने के फैसले में मैं शामिल नहीं था।
लड़ाइयां मुझसे पूछकर नहीं लड़ी गई थीं।
समझौते में भी मेरी सहभागिता सुनिश्चित नहीं थी।
मैं विपन्नता के शिखर से संपन्न लोगों को परिधि के भीतर लड़ता हुआ देखता आया हूं।
त्रिज्या रूठा क्यों है?
व्यास क्यों केन्द्र से दूर भाग रहा है?
जिवा कौन सी सिद्धी प्राप्त करना चाहता है?
और केंद्र चुप क्यों है?
केंद्र से सभी ने यथार्थ का दर्शन प्राप्त किया था। जीवन जीने की शैली को पहचाना था। परिधि पर भटकते और परिधि के भीतर फटकते प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक उन्नति का स्त्रोत केन्द्र है।
व्यास,त्रिज्या,जीवा परिधि ने केंद्र के समक्ष शंखनाद नहीं किया था। वचन,सुवचन, कुवचन कहने से पहले केंद्र से इजाजत नहीं ली थी।
केंद्र के तेज से सभी उज्ज्वल होना चाहते हैं लेकिन झुलसना कोई नहीं चाहता।
केंद्र सूरज है..
केंद्र नदी है..
सभी उससे पोषित हैं।
परिधि के भीतर फैल रही कटूता के लिए केंद्र नहीं विचार जिम्मेदार हैं।
उन सभी के विचार जो केंद्र की ओर ताक रहे हैं। जिन्होंने तब उस ओर देखा तक नहीं था जब भीतर उत्पन्न अहंकार को अपनी श्रेष्ठता का जामा पहना रहे थे।
सभी के भीतर अतीत की जड़ें गहरी और अंदर तक धंसी हुई हैं। केंद्र की जर्जर हो चुकी जड़ों ने अहंकार के समक्ष मौन को स्वीकार लिया है। मैं केंद्र को हर बार छूकर परिधि से बाहर भाग जाता हूं। किसी का मेरे जैसा हो जाने की उम्मीद से दूर मैं उनके जैसा ना हो जाऊं की लालच में।
केंद्र इनके ज़बाब नहीं दे सकता।
मैं इनके ज़बाब नहीं दे सकता।
अतीत भी नहीं।
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