सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, July 26, 2019

आशुओं की धार में



तुम्हारी यादें जो होंठों को मुस्कुराहट देकर जाती थी। तुम्हारे ख्वाब जो दिल को गुदगुदाया करते थे। वो यादें,वो ख्वाबो का समंदर मैंने खो दिया कहीं, मेरे आंसूओं की धार में। तुम्हारी बातें जो कभी हंसाया करती थीं। तुमसे दूरियां जो कभी रुलाया करती थीं। वो बातें वो दूरियों भरा रास्ता मैंने खो दिया कही, मेरे आंसूओं की धार में। तुम्हारा प्यार जो मुझे दुनिया में सबसे प्यारा होने का अहसास दिलाया करता था। तुम्हारा गुस्सा जो मुझे, तुम्हारा बनाया करता था। वो प्यार वो गुस्सा मैंने खो दिया कहीं, मेरे आंसूओं की धार में। तुम्हारी यादें, तुम्हारा ख्वाब, तुम्हारा प्यार, तुम्हारा गुस्सा, यहां तक की तुम्हारी बातों से भी मैंने दूरियां बना लीं पर काश तुम खुद को देख पाते मेरे आंसूओं की धार में।                              

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