समय बदल रहा है लोगों कि सोच बदल रही है, शिक्षा का स्तर हर रोज अपनी नई परिभाषा गढ़ रहा है और लोग उसके कदम से कदम मिलाकर चल रहें हैं लेकिन न लोगों का पता है और ना ही उनके कदमों का कि वो खड़े कहां हैं। सच कहूं तो हमारा देश एक ऐसी सोच पर चलता है जिसकी सिर्फ बातें होती हैं दूसरों को समझाने के लिए उसका उपयोग होता है फिर भी समझने वाले और समझाने वाले एक ही स्थान पर खड़े हैं। चलिए अब सीधा विषय पर आता हूं। पूरे विश्व में हर एक वस्तु, व्यक्ति, स्थान के नाम को संज्ञा कहते हैं। परन्तु हमारे देश में हर एक व्यक्ति, वस्तु और स्थान को भगवान माना जाता है याद रखियेगा मैं यहां नाम की चर्चा नहीं कर रहा। हर इंसान में भगवान है लेकिन खुद का दुश्मन भी इंसान है। मां-बाप भगवान का रूप होते हैं और वास्तविक तौर पर वहीं भगवान है फिर भी हमारे देश में वॄद्धाश्रम की कमी नहीं। पानी, अन्न सभी भगवान फिर भी नदियों की हालत और अन्न का दुरपयोग किसी से छिपा नहीं। और सोचने वाली बात यह है कि जहां भगवान की इतनी मान्यता है वहां कटुता भी है एक दूसरे के प्रति ईश्या भी है और इस से अलग मंदिरों में भारी भीड़ भी है। और वहीं विदेशों में जहां जिस चिज को सिर्फ उसी से जाना गया वह हमारे यहां से बेहतर है। सच कहूं तो हमने सिर्फ भगवान बनाया और बनाते चले गए और बनाने में इतने व्यस्त हो गए और इतने भगवान हो गए कि हम सब ही भूल बैठे की भगवान कहां है फिर हमने मंदिर बनाया और वहां मूर्ती के सामने भगवान को पाया और फिर मूर्ती की पूजा में इतने लगन से लग गए कि इंसान को इंसान समझना भी हमने जरूरी नहीं समझा। और सच कहूं तो यही से अंधविश्वास का जन्म हुआ और हम सब आधुनिकता के दौर में यूं गुम हुए कि परमेश्वर की हमने परिभाषा बदल दी और आने वाले समय में ऐसा ही चलता रहा तो मंदिर में भी भगवान नहीं मिलने वाले अब भी समय है और समय रहते जरूरत है खुद को बदलने की।
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Thursday, September 5, 2019
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