सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, July 7, 2019

कुछ लिखा था


कुछ लिखा था मैंने आज आपके लिए पर लिख कर मिटा दिया। उसमें आपकी कुछ मुलाकातें थी, आपसे जुड़ी कुछ यादें थीं। आपका प्यार था, आपकी नाराजगी थी, आपकी भावनाएं थी। कुछ लिखा था मैंने आज आपके लिए पर लिख कर मिटा दिया। झूठ नहीं बोलूंगा आपकी शिकायतें थीं,आपकी बुराई भी थी, आपकी गलतीयां जो आप छुपाते हो उसकी परछाई भी थी। कुछ लिखा था मैंने आज आपके लिए पर लिख कर मिटा दिया। आंखें कागज पर थी और कलम ऊगलीयों में अपनी पकड़ बना रफ़्तार पर था। तभी आपके चेहरे ने मेरी आंखों को आपके करीब लाया मेरे दिमाग ने फिर भी कलम को जारी रखने का अहसास कराया। पर ये दिल अब भी आपकी अच्छाई का परिचय देते हुए मेरे कलम पर लगाम लगाया आपसे नाराज़ होने का कारण मेरा दिल ढूंढ न पाया। फिर जो कुछ भी मैंने लिखा था उसे मिटा दिया। कुछ लिखा था मैंने आज आपके लिए पर लिख कर मिटा दिया।                                           

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